कुछ हम जैसे दीवाने थे,
जो सिर्फ तुम पर मरते थे...
ये इश्क़-ए-लब्सना इतना आसान नहीं
जितना तुम इसे आसान समझते थे..
Books उठा के, चश्मा लगा के...
Library से जब वो गुज़रते थे....
कुछ पढना था शायद उनको,
पर जाने किससे डरते थे....
पास कैसे होते हैं इसमें..?
मुझसे जब वो पूछा करते थे....
और मैं बस इतना ही कह पाता था....
किताबें खुली हो या बंद हों..
पर मोहब्बत किताबों से ही करना है....
ये एक आग का दरिया है
इसे पार कर तुम्हें जाना है....
आते तो हैं मैदान-ऐ-जंग में कई लोग
पर तुम्हें उनसे अलग करके कुछ दिखाना है...
जब आग हो कुछ कर गुजरने की
तो लक्ष्य छोटा लगने लगता है,
और तुम सवाल करते हो
कि तैयारी में कितना वक्त लगता है...
जिंदगी गुज़र जाती है,
और घड़ी की टिक टिक कर वक़्त कट जाता है....
तैयारी कैसे करनी है
फिर भी हर शख्श यहाँ समझ नहीं पाता है...
ये इश्क़-ऐ-मंजिल है
यहाँ तक तो अब जाना है
अब चाहे आँधी आये या तूफान आये
जब तय कर लिया तो बस पाना है