Biporjoy cyclone || current affairs ||


देश में एक और चक्रवात ने दस्तक दे दी है, अरबी समुद्र में यह बना एक भीषण तूफान अब चक्रवात का रूप धारण कर चुका है, गुजरात मौसम विभाग के डायरेक्टर मनोरमा मोहंती के अनुसार ये चक्रवात इस समय गोवा के पश्चिम दक्षिण पश्चिम से 920 किलोमीटर और मुबई के दक्षिण पश्चिम से 1120 किलोमीटर जबकि पोरबंदर से 1520 किलोमीटर है। मौसम विभाग के अनुसार अगले 24 से 48 घंटे में तूफान के और तीव्र होने की संभावना है। आइए इस लेख में हम जानते हैं कि Biporjoy तूफान क्या है? क्या है इस तूफान का मतलब और किसने रखा इसका नाम?


हर साल देश के समुद्री इलाकों में चक्रवात देखने को मिलते हैं इन चक्रवातों का अलग-अलग नाम रखा जाता है, इस बार गुजरात के समुद्री किनारों के शहरों पर चक्रवात Biporjoy का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में जितने भी चक्रवात आते हैं उनका नाम बारी-बारी से इस इलाके के देश रखते हैं जो पहले से तय होता है। यह सिस्टम साल 2004 से चला आ रहा है ताकि चक्रवात के नाम एक ही हों।


संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार, किसी विशेष भौगोलिक स्थान या पूरी दुनिया में एक समय में एक से अधिक चक्रवात हो सकते हैं, और यह एक सप्ताह या उससे अधिक समय तक चल सकते हैं, ऐसे में आपदा, जोखिम, जागरूकता, प्रबंधन और बचाव कार्यों को सुविधाजनक बनाने में किसी भ्रम से बचने के लिए हर चक्रवात को अलग नाम दिया जाता है।


चक्रवाती तूफान बिपरजॉय का असर गुजरात के बाद अब राजस्थान में भी दिखने लगा है। तूफान के कारण राज्य के कुछ हिस्सों में भारी बारिश भी शुरू हो गई है। बिपरजॉय तूफान के प्रकोप को देखते हुए भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने राजस्थान के बाड़मेर, जालोर, जैसलमेर, सिरोही, जोधपुर, पाली और आसपास के स्थानों के लिए ‘ऑरेंज अलर्ट’ जारी कर दिया है। तूफान के कारण उत्तर पश्चिम रेलवे द्वारा संचालित रेल यातायात भी प्रभावित हुआ है।


ये किन किन इलाकों में तबाही मचा सकता है, कितने दिनों तक रह सकता है और इन चक्रवातों का निर्माण कैसे होता है, इस प्रकार के कुछ दिलचस्प सवाल हम इस लेख में चर्चा करेंगे। यह लेख अध्ययन की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण लेख है। इस "बिपरजॉय" नामक तूफान को हम निम्न बिंदुओं द्वारा समझने का प्रयास करते हैं :-

6 जून को उठे इस चक्रवात का असर 10 दिनों तक रह सकता है। यह हाल के दिनों में अब तक का सबसे लंबे समय तक रहने वाला तूफान है। समुद्र के ऊपर एक चक्रवाती तूफान जितने अधिक समय तक रहता है उतनी ही अधिक ऊर्जा और नमी जमा होने की संभावना होती है। जिससे तूफान के और अधिक खतरनाक होने और जमीन से टकराने के बाद नुकसान पहुंचाने की संभावना बढ़ जाती है।

14-15 जून को कच्छ, देवभूमि द्वारका, पोरबंदर, जामनगर, मोरबी, जूनागढ़ और राजकोट समेत गुजरात के कई जिले चक्रवात की चपेट में आएंगे। यहां 14 और 15 जून को हैवी रेनफॉल हो सकता है। 16 जून को ये चक्रवात नॉर्थ गुजरात से सटे राजस्थान के इलाकों की तरफ बढ़ेगा। यहां भी वेरी हैवी रेनफॉल होने की संभावना है। बिपरजॉय से प्रभावित इलाकों में 15 जून तक 95 ट्रेनें रद्द रहेंगी। 16 जून को नॉर्थ गुजरात और साउथ राजस्थान में अधिकतम 65 किमी/घंटे की रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं।

गुजरात में NDRF की 12 टीमें तैनात हैं और 3 एडिशनल टीमों को स्टैंडबाय पर रखा गया है। मछुआरों को समुद्र में जाने से रोका गया है। 21 हजार से ज्यादा नावें अब तक पार्क हो चुकी हैं। इनके अलावा फिशरीज, हेल्थ और एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की टीमें भी तैनात रहेंगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 12 जून को एक इमरजेंसी मीटिंग की। इसमें गृह मंत्रालय, NDRF और सेना के अधिकारी मौजूद रहे। गृह मंत्री अमित शाह 13 जून को दिल्ली में राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेश के आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे।

साइक्लोन शब्द ग्रीक भाषा के साइक्लोस (Cyclos) से लिया गया है, जिसका अर्थ है सांप की कुंडलियां। इसे ऐसा इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ट्रॉपिकल साइक्लोन समुद्र में कुंडली मारे सांपों की तरह दिखाई देते हैं।

चक्रवात एक गोलाकार तूफान (सर्कुलर स्टॉर्म) होते हैं, जो गर्म समुद्र के ऊपर बनते हैं। जब ये चक्रवात जमीन पर पहुंचते हैं, तो अपने साथ भारी बारिश और तेज हवाएं लेकर आते हैं। ये हवाएं उनके रास्ते में आने वाले पेड़ों, गाड़ियों और कई बार तो घरों को भी तबाह कर सकती हैं।

चक्रवात समुद्र के गर्म पानी के ऊपर बनते हैं। समुद्र का तापमान बढ़ने पर उसके ऊपर मौजूद हवा गर्म और नम होने की वजह से ऊपर उठती है। इससे उस हवा का एरिया खाली हो जाता है और नीचे की तरफ हवा का प्रेशर यानी वायु दाब कम हो जाता है। इस खाली जगह को भरने के लिए आसपास की ठंडी हवा वहां पहुंचती है। इसके बाद ये नई हवा भी गर्म और नम होकर ऊपर उठती है। इसका एक साइकिल शुरू हो जाता है, जिससे बादल बनने लगते हैं। पानी के भाप में बदलने से और भी बादल बनने लगते हैं। इससे एक स्टॉर्म साइकिल या तूफान चक्र बन जाता है, जो धरती के घूमने के साथ ही घूमते रहते हैं। स्टॉर्म सिस्टम के तेजी से घूमने की वजह से उसके सेंटर में एक आई बनता है। तूफान के आई को उसका सबसे शांत इलाका माना जाता है, जहां एयर प्रेशर सबसे कम होता है। ये स्टॉर्म सिस्टम हवा की स्पीड 62 किमी/घंटे होने तक ट्रॉपिकल स्टॉर्म कहलाते हैं। हवा की रफ्तार 120 किमी/घंटे पहुंचने पर ये स्टॉर्म साइक्लोन बन जाते हैं। साइक्लोन आमतौर पर ठंडे इलाकों में नहीं बनते है, क्योंकि इन्हें बनने के लिए गर्म समुद्री पानी की जरूरत होती है। लगभग हर तरह के साइक्लोन बनने के लिए समुद्र के पानी के सरफेस का तापमान 25-26 डिग्री के आसपास होना जरूरी होता है। इसीलिए साइक्लोन को ट्रॉपिकल साइक्लोन भी कहा जाता है। ट्रॉपिकल इलाके आमतौर पर गर्म होते हैं, जहां साल भर औसत तापमान 18 डिग्री से कम नहीं रहता।

साइक्लोन के सेंटर में उसका आई होता है, जो सबसे शांत इलाका होता है। इसके बाद साइक्लोन वॉल या आईवॉल होती है, जो सबसे घातक होती है। इसे छत के पंखे से समझ सकते हैं, जिसमें पंखे के घूमते हुए पर साइक्लोन के खतरनाक इलाके जैसे होते हैं।

स्ट्रॉर्म या तूफान वातावरण में एक तरह का डिस्टर्बेंस होता है, जो तेज हवाओं के जरिए सामने आता है और उसके साथ बारिश, बर्फ या ओले पड़ते हैं। जब ये धरती पर होते हैं तो आम तूफान कहलाते हैं, लेकिन समुद्र से उठने वाले स्टॉर्म को साइक्लोन कहते हैं। साइक्लोन आम स्टॉर्म से ज्यादा तीव्र और खतरनाक होते हैं।

18वीं सदी तक साइक्लोन के नाम कैथोलिक संतों के नाम पर रखे जाते थे। 19वीं सदी में साइक्लोन के नाम महिलाओं के नाम पर रखे जाने लगे। 1979 से इन्हें पुरुष नाम भी देने का चलन शुरू हुआ। 'बिपरजॉय' बांग्ला भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है 'आपदा'। इस खतरनाक होते तूफान को बिपरजॉय नाम बांग्लादेश द्वारा दिया गया है।

साइक्लोन, हरिकेन और टाइफून तीनों एक ही चीज होते हैं और इन्हें ट्रॉपिकल साइक्लोन भी कहा जाता है। दुनिया भर में साइक्लोन को अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है। जैसे- उत्तरी अमेरिका और कैरेबियन आइलैंड में बनने वाले साइक्लोन को हरिकेन, फिलीपींस, जापान और चीन में आने वाले साइक्लोन को टाइफून और ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर यानी भारत के आसपास आने वाले तूफान को साइक्लोन कहा जाता है।

समुद्रों के लिहाज से देखें तो अटलांटिक और उत्तर पश्चिम महासागरों में बनने वाले साइक्लोन हरिकेन कहलाते हैं। उत्तर पश्चिम प्रशांत महासागर में बनने वाले साइक्लोन टाइफून कहलाते हैं।

दक्षिण प्रशांत महासागर और हिंद महासागर में उठने वाले तूफान साइक्लोन कहलाते हैं। इसी वजह से भारत के आसपास के इलाकों में आने वाले समुद्री तूफान साइक्लोन कहलाते हैं। वहीं टॉरनेडो भी भयानक तूफान होते हैं, लेकिन ये साइक्लोन नहीं होते हैं क्योंकि ये समुद्र के बजाय ज्यादातर धरती पर ही बनते हैं। टॉरनेडो सबसे ज्यादा अमेरिका में आते हैं।


साइक्लोन को स्पीड के हिसाब से 5 भागों में बांट सकते हैं-

1. साइक्लोनिक स्टॉर्म: इसमें हवा की अधिकतम स्पीड 62 से 88 किमी/घंटे होती है। ये साइक्लोन का सबसे कम घातक रूप है।

2. सीवियर साइक्लोन: इस साइक्लोन में हवा की अधिकतम स्पीड 89 से 120 किमी/घंटे तक होती है। ये समुद्र में मौजूद नावों या जहाजों के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

3. वेरी सीवियर साइक्लोन: 118 से 165 किमी/घंटे की रफ्तार तक की हवाओं वाले साइक्लोन सेवेर कहलाते हैं। ये साइक्लोन जमीन की ओर बढ़ने पर जान-माल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

4. एक्स्ट्रीमली सीवियर साइक्लोन: ये बेहद घातक होते हैं, इनमें हवाओं की स्पीड 166-220 किमी/घंटे होती है।

5. सुपर साइक्लोन: इसमें हवा की स्पीड 220 किमी/घंटे से ज्यादा होती है, जो कई बार 300-400 किमी/घंटे से भी ज्यादा हो सकती है। ये रास्ते में आने वाले पेड़ों, गाड़ियों और यहां तक बिल्डिंगों को भी तबाह कर सकते हैं।


2000 से विश्व मौसम संगठन (WMO) और यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमिशन फॉर द एशिया पैसेफिक (ESCAP) ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र के तूफानों के नामकरण करना शुरू किया गया। वर्तमान में साइक्लोन के नाम रखने का काम दुनिया भर में मौजूद छह विशेष मौसम केंद्र अर्थात रीजनल स्पेशलाइज्ड मेट्रोलॉजिकल सेंटर्स (RSMCS) और पांच चक्रवाती चेतावनी केंद्र यानी ट्रॉपिकल साइक्लोन वॉर्निंग सेंटर्स (TCWCS) करते हैं। भारतीय मौसम विभाग यानी IMD भी RSMCS के छह सदस्यों में शामिल है, जो चक्रवात और आंधी को लेकर एडवायजरी जारी करता है। IMD हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर इलाके में आने वाले साइक्लोन के नाम रखने और इस इलाके के 13 अन्य देशों को अलर्ट करने का काम करता है।


हिंद महासागर के इलाकों में आने वाले साइक्लोन के नाम रखने के फॉर्मूले पर 2004 में सहमति बनी थी। पहले इसमें आठ देश-भारत, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल थे, 2018 में इसमें ईरान, कतर, सऊदी अरब, यूएई और यमन भी शामिल हुए, जिन्हें मिलाकर इनकी संख्या 13 हो गई। साइक्लोन के नाम इसलिए रखे जाते हैं, ताकि उनकी पहचान करना आसान हो। हर साल साइक्लोन के नाम अल्फाबेटकली क्रम में यानी A से Z तक तय होते हैं। एक नाम का दोबारा इस्तेमाल कम से कम 6 साल बाद ही हो सकता है।


भारत में सबसे तेज साइक्लोन 1970 में आया भोला साइक्लोन था। ये भारत ही नहीं दुनिया का सबसे घातक साइक्लोन था। इसने भारत के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में भारी तबाही मचाई थी, जिसमें 3-5 लाख लोगों की मौत हुई थी।

दुनिया का सबसे लंबा हरिकेन या साइक्लोन 1979 में उत्तरपश्चिम प्रशांत महासागर में बना था। इसका डाइमीटर 2200 किलोमीटर था, जोकि अमेरिका के साइज का लगभग आधा है।


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