जीवन का अर्थ
जीवन क्या है? आखिर क्यों अधिकतर लोग चिंतित रहते हैं? अगर हम जीवन के अर्थ की बात करें तो इसका कोई अलग अर्थ नहीं है। इसका अर्थ इसी शब्द में छिपा है। "जीवन", इसका विच्छेद करने पर हमें "जी" और "वन" दो शब्द प्राप्त होते है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा "जी" अर्थात "चित्त" इस "वन" रूपी ब्रह्मांड में फंसा हुआ है जिससे प्रत्येक व्यक्ति निकलने का हर अथक प्रयास कर रहा है कोई इससे निकलने में सफल हो जाता है तो कोई नहीं। जिस प्रकार यह आवश्यक नहीं है कि वन में प्रत्येक वृक्ष सीधा एवं लंबा ही हो ठीक उसी प्रकार हमारा जीवन भी है अर्थात आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति ऊचाइयों के कदम चूमे अर्थात सफल हो यह भी आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति असफल ही हो। सफलता और असफलता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अगर एक आती है तो दूसरे जाना निश्चित है। अक्सर हम यह देखते हैं कि लोग असफल होने पर निराश हो जाते हैं परंतु हम यह नहीं जानते हैं कि असफलता और सफलता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जिस प्रकार शरीर और आत्मा का संबंध है एवं जिस प्रकार जल और जीवन से सम्बंध है, ठीक उसी प्रकार असफलता और सफलता का संबंध है। हमारे जीवन की पहली असफलता ही पहली सफलता है। इससे हमें निराश नहीं अपितु तो खुश होना चाहिए। असफलता यह दर्शाता है कि हम कोई सही कार्य करने जा रहे हैं एवं आने वाली कठिनाइयों से सावधान करती है। जिस प्रकार अच्छी गति में वाहन चलाने के लिए ब्रेक की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार जीवन का सुचारू रूप से चलने के लिए समस्याओं की आवश्यकता होती है। मोह माया को त्यागना जीवन नही है अपनी ईर्ष्या और लोभ को त्यागना जीवन है। यही जीवन का वास्तविक अर्थ है।
"अगर जीत गये तो सब अपने हो जाते हैं,
अगर हार गए तो बेमौत मारे जाते हैं,
कभी अपनों की सुनो तो कभी परायों की
उम्र भर किस्तों में मारे जाते हैं😢
इस बात को समझते हैं बस दो ही लोग
एक मैं और आईने में खड़ा वो शख्स!!"
✍️sukoon