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समान नागरिक सहिंता
भारत देश प्रारंभ से ही सनातन धर्म मानने वाला देश रहा है। यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि सभी धर्मों को मानने वाले निवास करते हैं। इनकी अपनी अपनी अलग अलग विचारधारा है। अपने अपने धर्म के अनुसार अलग अलग रीति रिवाज हैं। तो आइये आप सभी का आज के इस लेख में स्वागत है। आज के इस लेख में हम समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी ग्रहण करने की कोशिश करेंगे। आज के इस लेख में विशेष रूप से हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि भारत जैसे सनातन धर्म मानने वाले देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की क्या जरूरत पड़ गई। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। इसके पक्ष में क्या तर्क है इसके विपक्ष में क्या तर्क है। इसके लागू होने से लाभ हैं अथवा हानि अगर लाभ या हानि है भी तो किस हद तक। इन सभी रोचक सवालों के जवाब हम आज के इस लेख में देने की कोशिश करेंगे और हम आपको इन सवालों से संतुष्ट करने की पूरी कोशिश करेंगे।
समान नागरिक संहिता क्या है ?
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समान नागरिक संहिता एक प्रकार का विधिक ढांचा है इसलिए यह राज्य के नीति निर्देशक तत्व में शामिल किया गया है। इस विधिक ढांचे के अंतर्गत सभी नियमों एवं कानूनों को शामिल कर एक समान कानून को लागू करने की बात कही गई है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि एक ऐसा कानून जो सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों के लिए समान रूप से लागू किया जा सके। सभी धार्मिक समुदायों के कानूनों में एकरूपता प्रदान करने के प्रावधान के संदर्भ में ही यूनिफॉर्म सिविल कोड को लाने की बात कही गई थी। इसमें विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि से संबंधित प्रावधान शामिल हो सकते हैं।
चर्चा में क्यों समान नागरिक सहिंता :-
भारतीय संविधान का भाग 4 राज्य के नीति निदेशक तत्व (अनुच्छेद 36-51) से संबंधित है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अनुच्छेदों में से एक अनुच्छेद है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार- राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। भारत सहित कई देशों में समान नागरिक संहिता की अवधारणा कई वर्षों से बहस और चर्चा का विषय रही है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में से एक के रूप में समान नागरिक संहिता के अधिनियमन को सूचीबद्ध करता है। हालाँकि, देश की विविध धार्मिक और सांस्कृतिक संरचना के कारण भारत में यूसीसी का कार्यान्वयन एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने और अन्य संबंधित क्षेत्रों जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने वाले कानूनों के एक समूह को संदर्भित करता है जो किसी देश के सभी नागरिकों पर लागू होते हैं, चाहे उनका धर्म, विश्वास या जातीयता कुछ भी हो। यूसीसी को लागू करने का उद्देश्य एक सामान्य कानूनी ढांचा प्रदान करना है जो एक राष्ट्र के भीतर विविध धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच समानता, न्याय और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देता है।
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भारत में समान नागरिक संहिता को सिविल मामलों में कानूनों में लागू किया जा चुका है। जैसे- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932। ऐसे कुछ सिविल मामलों में समान नागरिक संहिता को लागू किया जा चुका है। भारत में धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में समान नागरिक संहिता को नहीं लागू किया गया है क्योंकि भारत में धर्मनिरपेक्षता के कानूनों में अभी भी विविधता मौजूद है।
समान नागरिक संहिता को लागू करने के पक्ष में तर्क :-
समान नागरिक संहिता के पक्ष में यह तर्क है कि यह लैंगिक समानता की ओर यह एक अच्छा कदम है, अलग अलग धर्मों रीति रिवाजों के अलग अलग कानूनों से मिलाकर बना यह एक कानून (समान नागरिक सहिंता) जन सामान्य को समझने में आसानी होगी तथा अधिक स्पष्टता भी होगी, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देगा। उनका मानना है कि कानूनों का एक समान कानून भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खत्म करेगा, सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करेगा और सामाजिक एकता को बढ़ावा देगा। कानून के तहत सभी को समान अधिकार एवं सुरक्षा प्रदान की जायेगी इसलिए भी इसे लागू करने के पक्ष में तर्क दिया गया है।
समान नागरिक संहिता को लागू करने के विपक्ष में तर्क :-
यूसीसी के विपक्ष में तर्क है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और विभिन्न धार्मिक समुदायों की अपनी मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार अपने व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित करने की स्वायत्तता को कमजोर करेगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन होने का खतरा है। यह अधिकार यह कहता है कि सभी को अपने अपने धर्म व सम्प्रदाय का प्रचार प्रसार करने की स्वतंत्रता है। समान नागरिक सहिंता के विषय पर आम जनता की सहमति का अभाव है क्योंकि आम जनता का इसके विपक्ष में तर्क है।
वर्तमान में, भारत में व्यक्तिगत कानून धार्मिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों पर आधारित हैं। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य जैसे विभिन्न धार्मिक समुदायों के पास विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे मामलों को नियंत्रित करने वाले अपने-अपने अलग कानून हैं। आलोचकों का तर्क है कि यह प्रणाली कानून के तहत विभिन्न धार्मिक समुदायों के व्यक्तियों के साथ अलग-अलग व्यवहार करके, विशेषकर महिलाओं के खिलाफ असमानता और भेदभाव को कायम रखती है।
समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है जिसके लिए कानूनी, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं सहित विभिन्न कारकों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। इसमें समाज में प्रचलित विविध धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं को समानता और न्याय के सिद्धांतों के साथ सामंजस्य स्थापित करना शामिल है। यूसीसी को लागू करने का निर्णय अंततः मौजूदा परिस्थितियों और लोगों की इच्छा पर विचार करते हुए प्रत्येक देश की सरकार और विधायिका पर निर्भर करता है।