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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।"


भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 सभी महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में से एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद माना जाता है। भारतीय न्यायपालिका ने कई महत्वपूर्ण मामलों में अनुच्छेद 21 को परिभाषित करते हुए बहुत ही विस्तृत व्याख्या की है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में परिभाषित शब्द "जीवन का अधिकार" अत्यंत व्यापक शब्द है। जिसमें मात्र केवल जीवित रहने का अधिकार ही नहीं शामिल है, अपितु इसके साथ कई अधिकार भी शामिल होते हैं जैसे व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा की रक्षा, उपचार का अधिकार इत्यादि अधिकार भी इस प्रावधान में शामिल होते हैं। जिनकी व्याख्या भारतीय न्यायपालिका द्वारा विभिन्न मामलों में विभिन्न प्रकार से की गई है। यह अनुच्छेद ना केवल व्यक्ति के भौतिक अस्तित्व की रक्षा करता है अब तो मानसिक रूप से भी व्यक्ति की रक्षा करता है।




भारतीय न्यायपालिका ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या अलग-अलग मामलों में अलग-अलग प्रकार से की है। कुछ प्रमुख मामले जिनमें न्यायपालिका ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या में महत्वपूर्ण बिंदुओं को रखा वह निम्नलिखित हैं:-

संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या पर अगर हम प्रमुख मामलों की चर्चा करते हैं तो सबसे पहले मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) का मामला सामने आता है जोकि भारतीय न्यायपालिका का अति महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक मामला है इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "व्यक्तिगत स्वतंत्रता में विदेश यात्रा भी शामिल है" और आगे उच्चतम न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया न्यायसंगत होनी चाहिए। इस मामले ने संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित "जीवन के अधिकार" को विस्तृत करने का प्रयास किया।


सुनील बत्रा बनाम भारत संघ 1978, इस मामले के निर्णय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय कैदियों की रक्षा करने का सफल प्रयास किया। सुप्रीम कोर्ट ने यह अभिनिर्धारित किया कि भले ही वह व्यक्ति जेल में है परंतु उसे भी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं मौलिक अधिकारों के संरक्षण का अधिकार है।


संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण मामला ओलगा टेलिस बनाम मुंबई नगर निगम 1985, इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि आजीविका का अधिकार जीवन की स्वतंत्रता के अधिकार से अलग नहीं है और आगे यह भी कहा कि कोई भी राज्य बिना किसी निष्पक्ष जांच व प्रक्रिया के किसी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं कर सकता। यह मामला स्ट्रीट वेंडर्स एवं फुटपाथ पर रहने व कमाने वालों से संबंधित था एवं सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस मामले के आदेश द्वारा उनके अधिकारों की रक्षा करने का एक सफल प्रयास किया।


एक अन्य प्रमुख मामला परमानंद कटारा बनाम भारत संघ 1989, इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने चिकित्सा उपचार के अधिकार को भी संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत परिभाषित किया है और यह भी निर्णय दिया कि प्रत्येक घायल व्यक्ति को कानूनी औपचारिकताओं की प्रतीक्षा किए बिना चिकित्सा का अधिकार है।


अभी कुछ वर्षों पहले भारतीय न्यायपालिका ने पर्यावरण संरक्षण को शामिल करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या को और भी विस्तृत कर दिया है। सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य 1991, के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश पारित किया कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार भी संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है।



विशाखा बनाम राजस्थान राज्य 1997, यह मामला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित है। इस वाद में यह कहा गया कि एक महिला को ससम्मान के साथ कार्य करने का अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति उसके सम्मान  का उल्लंघन करता है तो यह माना जाएगा कि उसने उस महिला के जीवन की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया है एवं वह दोषी ठहराया जाएगा। यह मामला कार्यस्थल पर महिला के साथ यौन उत्पीड़न से संबंधित है।


एक अन्य महत्वपूर्ण मामला पीपुल यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) बनाम भारत संघ 2000, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि हिरासत में हुई मौतों की पुलिस या कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा पूरी तरह निष्पक्ष रुप से जांच की जानी चाहिए और न्यायालय ने विशेष रूप से पुलिस सुधारों एवं मानवाधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता पर भी बल दिया।


सर्वोच्च न्यायालय ने पुत्तास्वामी बनाम भारत सरकार 2017 में यह निर्णय दिया की निजता का अधिकार भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ही एक अभिन्न अंग है। इस मामले में पहली बार निजता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में इतनी महत्ता प्रदान की गई।




उपर्युक्त कुछ प्रमुख मामले संविधान के अनुच्छेद 21 की विस्तृत व्याख्या एवं प्रकृति को दर्शाते हैं। उपर्युक्त मामलों में न्यायपालिका द्वारा अनुच्छेद 21 की व्याख्या ने व्यक्तियों के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित स्वतंत्रता को विस्तृत एवं उनके अधिकारों को संरक्षित करने का अथक प्रयास किया। अतः यह अनुच्छेद भारतीय संविधान के सभी महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में से एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद माना जाता है जो कि व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है।


अतः उपर्युक्त व्याख्या से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 ने व्यक्तियों के निजी जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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