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Sukoon

उठ जाग चल खड़ा हो
उठ जाग चल खड़ा हो 
फिर चाहे तू किसी भी हाल में क्यों न पड़ा हो
न तू अपाहिज है न तू किस्मत का मारा है
बस तू अपनी इच्छाओं का हत्यारा है
ज़िन्दगी एक और मुश्किले अनेक हैं
पर उम्मीदें हमारी नेक और रास्ते भी अनेक हैं
माना कि अंधेरा घना है 
पर मशाल दिखाना किसे माना है
ये दुनिया है यहां किसी के पास सुख तो किसी के पास दुःख है
जो किसी जगह रुक न सके वो सुख और दुख है
इसका आना भी निश्चित है
वरना अपनों को पहचान पाना अनिश्चित है
तुझे नापसन्द करेगा ये जहां सारा 
फिर तुझमे हीरा रत्न ही क्यों न जड़ा हो
उठ जाग चल खड़ा हो 
फिर तू किसी भी हालत में क्यों न पड़ा हो
ये जहां(दुनिया) है यहां कभी दिन तो कभी रात है
जिसमे मिले सबक हमेशा ये वही आघात है
मत घबरा ठोकरों से इन्हें यही रह जाना है
इनका आना तुम्हे मालूम हो जाना है बस थोड़ी दूर और जाना है
जुगनू के वश में कहां की वो अंधेरा कम कर दे
पर उसने ये नही सिख की अपना हौशला कम कर दे
अब तू इस डर से पडा है कि तुझे असफल होने पड़ेगा
असफल तो तू पहले से ही है अब तुझे हौशला दिखाना पड़ेगा
सांप के डर से क्या जमीं पर पावँ रखना छोड़ देते हैं
तू हिम्मत तो कर हौशला तो दिखा 
ईश्वर अल्लाह मुश्किले खुद ब खुद मोड़ देते है
तू हिम्मत तो कर बेड़ियाँ तो खुद ब खुद टूट जायेंगीं
तू एक बार हौसला तो दिखा असफलता खुद ब खुद पीछे छूट जाएगी
अगर तू अपाहिज होने का नाटक करेगा 
तो तुझे कोई उठाने न आएगा
फिर तू किसी भी हालत में क्यों न पड़ा हो
उठ जाग चल खड़ा हो 
फिर तू किसी भी हालत में क्यों न पड़ा हो

Sukoon

जुगनू के वश में कहाँ कि अँधेरा कम कर दे,
पर उसने ये नहीं सीखा कि अपना हौसला कम कर दे!
और तुम हर रोज़ यूँ ही लड़ते रहो ज़िन्दगी से मेरे दोस्त
एक दिन ख़ुदा ख़ुद कहेगा ख़ुद से कि इसकी मुश्किलें कम कर दे!!



अभी उम्मीदें और भी हैं
अभी पढ़ने की किताबें और भी हैं
सिर्फ इतनी जीत से मैं रुकने वाला नहीं हूँ
अभी मुझमे बहुत कुछ करने के हौसले और भी हैं!!❤️


*कुछ हम जैसे दीवाने थे,* 
*जो सिर्फ तुम पर मरते थे...*
Books उठा के, चश्मा लगा के...
Library से जब वो गुज़रते थे....
कुछ पढना था शायद उनको, 
पर जाने किससे डरते थे....
पास कैसे होते हैं इसमें..?  
मुझसे जब वो पूछा करते थे....
और मैं बस इतना ही कह पाता था....
किताबें खुली हो या बंद हों..
पर मोहब्बत किताबों से ही करना है....
ये एक आग का दरिया है
इसे पार कर तुम्हें जाना है....
आते तो हैं मैदान-ऐ-जंग में कई लोग
पर तुम्हें उनसे अलग करके कुछ दिखाना है...
जब आग हो कुछ कर गुजरने की
तो लक्ष्य छोटा लगने लगता है,
और तुम सवाल करते हो
कि तैयारी में कितना वक्त लगता है...
जिंदगी गुज़र जाती है,
और घड़ी की टिक टिक कर वक़्त कट जाता है....
तैयारी कैसे करनी है
फिर भी हर शख्श यहाँ समझ नहीं पाता है...
ये इश्क़-ऐ-मंजिल है
यहाँ तक तो अब जाना है
अब चाहे आँधी आये या तूफान आये
जब तय कर लिया तो बस पाना है

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